सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.
श्राद्ध कार्य में विचारणीय विन्दु
1- सिर्फ औपचारिकता का निर्वाह नहीं करना चाहिए।
2- विधि-विधान से पूजन से दैनिक जीवन में विधि-विधान से काम करने का स्वभाव विकसित होता है।
3- श्राद्ध के लिए मध्याह्न 12 से अपराह्न 3 बजे का मध्य समय ही चयन करना चाहिए। पूर्वाह्न नहीं।
4- सड़े गले पदार्थ से श्राद्ध करने से अच्छा श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
5- श्राद्ध के लिए निर्धारित पुरोहित, पूर्व में कम से कम एक दिन पहले आमंत्रित करना चाहिए।
6-इसके निमित्त आमंत्रित वटुक/विद्वान, भोजन परिवार के सदस्य ही भोजन करें। अचानक मिलने आ गए व्यक्ति को नहीं करना चाहिए।
श्राद्ध में निषेध-
1- लोहे के पात्र का प्रयोग सिर्फ सब्जी/फल काटने के निमित्त करें। लोहे के पात्र में न खाएं और न खिलाएं।
2-चोरी में पकड़े गए, मूर्ख, मांस बेचने वाले, अपने नौकर, धूर्त, बिजनेस करने वाले ब्राह्मण को भोजन न कराएं। अध्ययनरत वटुक मिल जाएं तो सर्वोत्तम ।
निषिद्ध अन्न
1-जिस भोजन में बाल पड़ गया हो, कीड़े पड़ गए हों, बासी, दुर्गंध आ गया हो, वह वस्तु दान में वर्जित ।
2-बैंगन, मसूर, अरहर (खड़ा), गाजर, गोल लौकी, शलजम, हींग प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, चना आदि दान में न दें और भोजन में भी बचें।
भोजन की तारीफ
श्राद्ध का भोजन करने और कराने वाले दोनों भोजन की न तारीफ करे और न पूछे। मसलन यह न पूछे कि ‘भोजन कैसा था ?’ और भोजन करने वाला न कहे कि भोजन बहुत अच्छा था।
2- भोजन करने वाला दुबारा भोजन कहीं न करे।