भारतीय आधारित अर्थव्यवस्था

 

 

डॉ दिलीप अग्निहोत्री की कलम से…

कोरोना महामारी विश्व के परिदृश्य को बदल रही है। कम्युनिस्ट और कैपलिस्ट सिस्टम इसके सामने लाचार नजर आ रहा है। ऐसे में भारत के स्वदेशी विचार से ही समस्याओं का समाधान हो सकता है। विश्व व्यापार संगठन निरर्थक साबित हो रहा है।

परिदृश्य ऐसा बन रहा है, जिसमें भारत को ही विश्व का नेतृत्व करना होगा। इसके लिए भारत को पहले आर्थिक स्वाधीनता और स्वदेशी भाव जागृत करना होगा। इसी के अनुरूप आर्थिक नीतियां बनानी होगी। इसमें प्रकृति व जल संरक्षण जैसे विचार भी समाहित है।

दंतोपंत ठेगड़ी के स्वदेशी विचारों को साकार करने का समय आ गया है। स्वदेशी के आचरण को सम्बल बनाना होगा। समाज और देश को स्वदेशी को अपनाना होगा। संकट को अवसर के रूप में समझने की आवश्यकता है। इसी से बेहत्तर भारत की राह निर्मित होगी। स्वदेशी उत्पाद में क्वालिटी पर ध्यान देने की आवश्यकता है। विदेशों पर निर्भरता को कम करते हुए स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर बल देना होगा। इसके अलावा कोरोना को परास्त करने के लिए आत्मसंयम का परिचय देना होगा। यह भी भारतीय चिन्तन से संभव है।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अर्थव्यवस्था का भारतीयकरण करना अपरिहार्य है। आर्थिक क्षेत्र में स्वावलंबन को महत्व देना होगा। केवल नौकरी से सबका भला नहीं हो सकता। स्वरोजगार की व्यवस्था करनी होगी। अर्थनीति, विकासनीति की रचना अपने सिस्टम के आधार से करना होगा। भारतीय चिंतन के अनुरूप नीति बनाने पर बल दिया।अधिसंख्य आबादी गांव में रहती है। इसलिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना होगा। सर्वाधिक रोजगार का सृजन यहीं से होगा।

इसी के साथ पर्यावरण का संरक्षण करना होगा। यह कार्य भी भारतीय चिन्तन से संभव है। पृथ्वी सूक्त का सन्देश भारत ने ही दिया। इस पर अमल करना आवश्यक है। वर्तमान के मुकाबले के साथ भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयारी करनी होगी। आज जो अस्त व्यस्त हुआ है, उसे ठीक करने में समय लगेगा। बाज़ार, फैक्ट्री, उद्योग शुरू करने में भी सावधानी दिखानी होगी। कोरोना को परास्त करने के लिए आत्मसंयम का परिचय देना होगा।

कोरोना वायरस चीन की सोची समझी षड्यंत्र का हिस्सा है। इसे चायनिज वायरस बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय आर्थिक मॉडल खड़ा किया जाए ​क्योंकि चायनिज मॉडल लोकतंत्र विरोधी है। भारत के चिन्तन से ही विश्व का कल्याण संभव है।

वर्तमान परिदृश्य में भारत की ओर दुनिया आशा भरी नजरों से देख रही है। विदेशी की जगह स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना चाहिए। स्वदेशी अपनाकर अपने राष्ट्र को आर्थिक,सामाजिक और व्यापारिक दृष्टि से विकसित कर सकते हैं। स्वदेशी वस्तुओं को भावनात्मक लगाव के साथ अपनाना चाहिए।

भारत प्राचीन समय से ही व्यापार के क्षेत्र में विश्व का प्रतिनिधित्व करता रहा है। वैश्वीकरण की आर्थिक व्यवस्था ने मानव कल्याण एवं सामूहिक व्यापारिक विकास को नुकसान पहुंचाया है। अर्थव्यवस्था वही सही होती है, जिसमें गरीब एवं कमजोर व्यक्ति के विकास और कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।

आर्थिक विकेन्द्रीकरण, ग्रामीण विकास, सतत विकास, कुशल प्रणाली एवं नैतिकता,रोजगार उन्मुखी विकास को ध्यान में रखकर अर्थव्यवस्था का निर्माण होना चाहिए।स्वदेशी अपनाकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के बेहतर अवसर पैदा कर सकते हैं। भारतीय नैतिक मूल्यों,संस्कृति और स्वदेश निर्मित वस्तुओं पर देश गर्व करना होगा।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जो एक जिला एक उत्पाद योजना संचालित कर रही है,वह भी भारतीय परिवेश की अर्थ व्यवस्था को बढ़ावा देने वाली है। लघु स्तर पर इकाई लगाने के लिए ऋण उपलब्ध कराया गया। पारम्परिक शिल्प एवं लघु उद्यमों के संरक्षण तथा उसमें अधिक से अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करने व उनकी आय में वृद्धि के प्रयास किये। लोन की मार्जिन धनराशि में पच्चीस प्रतिशत की छूट सरकार दे रही है। इसके साथ ही टूल किट का वितरण भी किया गया। ओडीओपी के तहत सभी जिलों के उत्पाद का उत्पादन वृद्धि के लिये ट्रेनिंग दी जाएगी।

प्रत्येक जिले में सामान्य सुविधा केंद्र भी बनाए जाएंगे। उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए हस्तशिल्पियों को ऋण भी उपलब्ध कराए गए। ओडीओपी के उत्पाद ई-कॉमर्स वेबसाइट अमेजन से भी बिक्री संभव हुई है। प्रदेश सरकार के साथ अमेजन का एमओयू हुआ था।

अमेजन अपनी वेबसाइट में ओडीओपी की एक माइक्रो साइट विकसित की है। इसमें इन जिलों के उत्पाद की बिक्री होगी।गत वर्ष उत्तर प्रदेश ने करीब नब्बे हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा कमाई थी। इस वर्ष एक लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना से राष्ट्रीय निर्यात में भारी वृद्धि का अनुमान है। प्रदेश में कृषि क्षेत्र के बाद सबसे अधिक रोजगार परंपरागत उद्योगों से ही मिलेंगे। विदेशी मुद्रा भी इसी से कमाई होगी।

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