डॉ दिलीप अग्निहोत्री
कारगिल विजय दिवस में एक बार फिर जंग की याद ताजा कर दी। इस स्मरण में हमारे सैनिकों का शौर्य व बलिदान के साथ पड़ोसी मुल्क का विश्वासघात भी शामिल है। कुछ ही दिन पहले चीन के साथ हुई हिंसक हड़प की याद भी अभी ताजा थी। इसमें भी हमारे सैनिकों ने जान की बाजी लगा कर सीमाओं की रक्षा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कारगिल विजय दिवस पर मन की बात में यही प्रसंग उठाये। उन्होंने शहीद हुए सैनिकों को नमन किया। पाकिस्तान की असलियत बयान की। इसी के साथ युद्ध काल में नागरिकों की जिम्मेदारी का भी उल्लेख किया। यह सही है कि सीमा पर सैनिक ही लड़ते है। लेकिन इस माहौल में देश के सभी नागरिकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
ऐसे समय में उनके विचार सीमा पर लड़ने वाले जवानों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते है। उनको लगना चाहिए कि पूरा देश उनके साथ है,सभी लोगों को उनकी वीरता पर विश्वास है। ऐसे में खासतौर पर नेताओं को बहुत संभल कर बयान देने चाहिए। आमजन तो अपने इस कर्तव्य का बखूबी निर्वाह करते है। वह सैनिकों के साथ बुलन्द इरादों के साथ दिखाई देते है। लेकिन विपक्ष के चंद नेता इसे भी राजनीति का अवसर मानते है। अभी चीन से तनाव के समय यही देखा गया। एक पार्टी के नेता अपने ही सैनिकों का मनोबल गिराने वाले बयान दे रहे थे। मन की बात में मोदी ने इसका कोई उल्लेख नहीं किया। युध्द काल में सभी को अपनी जिम्मेदारी का अहसास अवश्य कराया है। यदि कोई समझदार हो तो उसके लिए इशारा ही काफी होता है।
नरेंद्र मोदी ने करगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारत को मिली जीत की इक्कीसवीं वर्षगांठ के अवसर पर सशस्त्र बलों को श्रद्धांजलि दी। कहा कि उनकी वीरता पीढ़ियों को प्रेरित कर रही है। भारतीय सैनिकों के करगिल की चोटियों से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के बाद 26 जुलाई 1999 को करगिल युद्ध को समाप्त घोषित किया गया था। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी वार मेमोरियल जाकर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। नरेंद्र मोदी कहा कि युद्ध की परिस्थिति में इंसान को बहुत सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकि इससे सैनिकों और उनके परिवार के मनोबल पर बहुत गहरा असर पड़ता है कभी।कभी प्रतिकूल व्यवहार से देश का बहुत नुकसान होता है।
युद्ध काल में हर एक देशवासी को अपनी भूमिका तय करनी होती है और वह भूमिका देश की सीमा पर,दुर्गम परिस्तिथियों में लड़ रहे सैनिकों को याद करते हुए तय करनी होगी। भारतीय विरासत पर स्वाभिमान के एक प्रसंग को भी नरेंद्र मोदी ने उठाया। कुछ दिन पहले श्री चंद्रिका प्रसाद संतोखी सूरीनाम के नए राष्ट्रपति बने। वह भारत के मित्र हैं। उन्होंने दो वर्ष पहले आयोजित पर्सन ऑफ इंडियन ऑरिजन पार्लियामेंट्री कॉन्फ्रेंस में भी हिस्सा लिया था। उन्होंने शपथ की शुरूआत वेद मंत्रों के साथ की और संस्कृत में बोले। उन्होंने हाथ में वेद लेकर अपने नाम के बाद मंत्रोच्चारण किया-ॐ अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छकेयं तन्मे राध्यताम्। इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि। नरेंद्र मोदी ने इस प्रसंग की चर्चा के माध्यम से भारत की युवा पीढ़ी को एक सन्देश भी दिया है। हमको अपनी प्राचीन विरासत व धरोहर पर गर्व करना चाहिए।