लेखक- काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार
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तालाबन्दी की दो सबसे खास बातें रहीं जो लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी लोग लम्बे वक्त तक चाह के भी भुला नहीं पाएंगे ।एक तो रामायण और महाभारत धारावाहिक का पुनः प्रसारण और दूसरा वजीरे खजाना निर्मला सीतारमण के राहत पैकेज का श्रंखलाबध्द सीधा प्रसारण । लोग रोज शाम 4 बजे अपने टीवी सेट पर नजरें गड़ा लेते और एक एक शब्द ध्यान से सुनते, पता नहीं कब कौन सी घोषणा कोरोना जनित आर्थिक दुख दर्द के लिए रामबाण हो और वो उसके श्रवण सुख से वंचित रह जाएं । चौथा एपिसोड मैंने दूसरों का अनुसरण करते हुए आँख कान खोल के सुना । घर वालों को हिदायत दे रखी थी – खबरदार जरा सा भी शोर शराबा न हो । वो बोलती रहीं मैं सुनता रहा , पर एक घण्टे तक मुसलसल सुनने के बाद भी मेरे ज्ञान चक्षु बन्द तो बन्द , समझ नहीँ आया कि उसमें क्या ग्राह्य था क्या अग्राह्य ।
राहत के आखिरी खेप के भाष्य को न समझ पाना मेरी कमअक्ली नहीं तो और क्या है। लोग मुझे मूढ़ मगज कहेंगे इस शर्म के चलते किसी से कुछ कह भी नहीं सकता । पड़ोसी शर्मा जी मिले , लहक के बोले देखा पत्रकार जी पहली बार ऐतिहासिक एलान हुआ है , दुनिया हैरान है ऐसे शानदार राहत पैकेज से । अब क्या कहूँ उनसे – हैरान तो मैं भी हूँ अपनी कम समझ को लेकर ।मैं यही तय नहीं कर पा रहा कि ये दो माह पहले के बजट भाषण का संशोधित संस्करण था या कुछ और , लिहाज सहमति में सिर हिलाकर निकल लिया ।
बड़े पुरनिये कह गए हैं किसी पर उँगली उठाने से पहले ये जान लो कि बाकी की चार उंगलियाँ तुम्हारी ओर इशारा कर रहीं हैं । फिर वो पहले वाला जमाना भी नहीं रहा , आज तो उँगली उठी नहीं तो तोड़ने वाले अचानक नमूदार हो जाएंगे । अगर तोड़े नहीं तो गालियाँ शर्तिया देंगे । अब देखिए न चौतरफा नगाड़ा बजा नगाड़ा बजा की गूंज जारी है ।ऐसे में भइया आत्मनिर्भर बनने में ही राहत है। पर आदत से लाचार हूँ , हर चीज की बारीकी को समझने की बीमारी जो लग गयी है । बीए में हिंदी भी ले रखी थी , तब स्नातक की पढ़ाई में तीन विषय हुआ करते थे ।
हिंदी में सब समझ मे आ गया पर में साहित्य में रहस्यवाद के रहस्य को कभी समझ ही नही पाया । हालांकि उस दौरान प्रोफेसर साहब ने समझाया था कि रहस्यवाद वह भावनात्मक अभिव्यक्ति है जिसमें कोई व्यक्ति या रचनाकार उस अलौकिक, परम, अव्यक्त सत्ता से अपना प्रेम प्रकट करता है जो सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है। वह उस अलौकिक तत्व में डूब जाना चाहता है। उसे उस पारलौकिक आनंद को व्यक्त करने के लिए प्रतीकों का सहारा लेना पड़ता है जो आम जनता के लिए रहस्य बन जाते हैं। यह गूढ़ रहस्य अब समझ मे आया , जो बात जनता को समझ में न आये वही रहस्यवाद है ।
राहत पैकेज भी रहस्यवाद से प्रभावित सुंदर रचना की तरह है जिसे समझने के लिए प्याज की परत दर परत खोलते जाइये अंत में सामना रहस्य से ही होता है । अब देखिए न जिनके लिये इसका ऐलान हो रहा उन्हें कुछ पता ही नही वो मुसीबत के भँवर में चिकरघिन्नी बने हैं , मीमांसा वो कर रहे जिन्हें इसकी जरूरत ही नहीं ।दुन्दुभि बजाने वाली जमात अलग से ढोल मजीरा पीट रही – वाह क्या बात है , ऐतिहासिक कदम , न भूतों न भविष्यति । ऐसे ही एक चारण गान करने वाले से पूछ बैठा इसमें नया क्या है जो पहले नही हो रहा था , इसमें कितनी राहत है कितना कर्ज ,उसने पहले मुझे घूरा फिर बोला पूछकर बताऊँगा । सच ही कहा उसने वो तो अपना धर्म निभा रहा है , जितनी चाभी भरी है उतना ही करेगा न , बाद बाकी के लिए टीवी एंकर जो हैं , वो बता रहें हैं इससे ठप्प पड़ा आर्थिक चक्का बुलेट ट्रेन के माफिक दौड़ने लगेगा। पर मुझ जैसे मूढ़ मगज यह सोच कर परेशान हैं कि मुल्क की सड़कों को हाँफते हुए पैदल नापने वाले भला उस बुलेट ट्रेन को पकड़ भी पाएंगे या नहीं ?
पूरब में काफी कही सुनी जाने वाली लोकोक्ति है — आज मरे कल गौना । जरूरत तुरन्त राहत की है , ऐलान पाँच साला सुधार कार्यक्रम का हो रहा । वजीरे आजम के 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज के ऐलान से जो उम्मीदें बढ़ीं थीं वो वजीरे खजाना के चौथे एपिसोड तक आते आते काफूर हो गईं । धुन्ध छंट गई बात साफ हो गई , सब कुछ कर्ज आधारित पंचवर्षीय योजना है। कर्ज लीजिये आत्मनिर्भर बनिये । सरकार विदेशी बैंकों के ऋण से आत्मनिर्भरता के कीर्तिमान बना रही यही काम आप स्वदेशी बैंकों के जरिए करिए । संरचनागत सुधार के लिए निजीकरण की नीति को गति दी जा रही है आप भी सार्वजनिक से निजी की तरफ आइए । हमारे नीति निर्माताओं के लिए सुधार और प्रतिस्पर्धा का मतलब है निजीकरण। लेकिन हाल के संकट में हमने देखा है कि निजी खिलाड़ी व बाज़ार पंगु बन गए और पब्लिक सेक्टर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब किसे सच माने किस पर यकीन करें ।