वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी शर्मा की रिपोर्ट…
मैंने आपको मैना और उनके चूजों की कहानी सुनाई थी.. किस तरह से मैना जोड़ा अपने बच्चों को बारी बारी से आकर अनाज के दाने और छोटे मोटे कीड़े मकौड़े चोंच से खिलाता है.. बच्चे माता पिता के उड़ने के बाद घोसले से अग्र भाग निकालकर टुकुर टुकुर उनका रास्ता देखते हैं और जैसे ही माता पिता खाने का सामान लेकर हाज़िर होते हैं बच्चे जोश से चीखने चिल्लाने लगते हैं.. ये सिलसिला तब तक चलता है जब तक बच्चे उड़ने के क़ाबिल नहीं हो जाते.. इस कहानी के ज़रिए मैं बस इतना बताना चाहता हूं कि मैना जोड़े ने यदि बच्चों को जन्म देते ही उनके हाल पर छोड़ दिया होता तो बच्चे ज़िंदा ही नहीं बचते..
अब आइए एक इंसानी परिवार की सच्ची कहानी सुनाता हूं जिसने मुझे भी बेचैन कर दिया है.. इस कहानी में एक बुज़ुर्ग माता पिता का असहनीय दर्द है तो उनकी बहू और तीन पोते और एक पोती की वेदना से पूर्ण तड़प है.. जिसे एक सभ्य समाज कभी बर्दाश्त नहीं करेगा.. पूरी कहानी का मुख्य विलेन परिवार का वो बेटा है जिसने स्वार्थवश पूरे परिवार के जीवन में ही अंधकार भर दिया..
वाराणसी के खेवली भतसार की रहने वाली तक़रीबन पैंसठ साल की जड़ावती पांडेय यदि पति, बहु, पोते, पोती का दुःख दर्द लेकर मेरे ससुराल में पत्नी Soni Sharma से कल नहीं मिलतीं तो आप तक समाज का ये कड़वा सच मैं नहीं पहुंचा पाता.. जड़ावती की मुताबिक जिस बेटे अमरेश पांडेय पर बूढ़े माता पिता, पत्नी और चार बच्चों के देखभाल और पेट भरने की ज़िम्मेदारी थी.. वो अमरेश पिछले कई सालों से मुंबई में दूसरी शादी कर ऐश कर रहा है.. बूढ़े माता पिता उसके लिए तड़प रहे हैं तो पत्नी नंदनी पांडेय तो पति वियोग में मानसिक हालत बिगाड़ चुकी है.. जब माता पिता और पत्नी का ये हाल है तो सोचिए अमरेश के तीन बेटे और एक बेटी पर क्या बितती होगी.. परिवार के एक मात्र कमाऊ सदस्य के साथ छोड़ने से पूरा परिवार टूट चुका है.. अमरेश के चारों बच्चे खेवली के सरकारी स्कूल में पढ़ने को मज़बूर हैं.. वहीं स्कूल खुलने पर मिड डे मील से उनका पेट भरता है.. जड़ावती देवी शरीर से लाचार हैं लेकिन वो खुद को परिवार का सबसे ताकतवर सदस्य समझकर सुबह सबेरे आस पास के गांवों के लोगों से मदद मांगने निकल पड़ती हैं.. जड़ावती को लोग खाने पीने की कोई चीज़ देते हुए यदि कहते हैं कि माई तू खा ले तो वो सोच में पड़ जाती हैं.. बार बार कहने पर बहुत उदासी से कहतीं हैं कि अरे पहले हम कैसे खा लें.. हमारे पोता पोती भूखे हैं हमको बहुत पाप लगेगा.. वो बहुत दर्द के साथ कहती जो देवे के है दे दा.. हम घर जाकर सबके साथ खा लेब..
जड़ावती को इस उम्र में भी अपनी फ़िक्र नहीं उन्हें तो निष्ठुर बेटे के बच्चों की ही बहुत चिंता है.. इसी चिंता में बेसुध हुए वो एक दिन भटक रहीं थी कि एक कुत्ते ने उनके पैर को ही दबोचकर लहूलुहान कर दिया.. सोचिए जो ज़िम्मेदारी उनके जवान बेटे अमरेश को उठानी चाहिए वो मुंबई में दूसरी पत्नी संग रह रहा है और इधर गांव में परिवार बेबसी बदहाली के आंसू रो रहा है.. जड़ावती ने अपने पैर में कुत्ते के दांतों के निशान दिखाते हुए बताया कि उनकी हालत तो इलाज़ कराने की भी नहीं है.. उन्हें न तो वृद्धा पेंशन ही मिलता है और न ही सरकारी स्कीम का कोई फ़ायदा ही मिलता है.. यहां तक राशन कार्ड में केवल जड़ावती और उनके पति अनंत पांडेय जी का ही नाम दर्ज है.. बहू और उसके चारों बच्चों का नाम मौजूद नहीं होने से सरकारी गेहूं, चावल तक उन्हें नहीं मिलता..
जड़ावती शून्य में निहारते हुए बोलीं आज बेटा साथ होता तो ये हालात नहीं होते.. जड़ावती का ये पुत्र मोह ही है जो अब भी उससे उम्मीद पाले हैं जबकि खुद ही बोल भी रहीं हैं कि बेटवा हम सबके भूला गइल.. हां दू साल पहले पोती सोनम जब अपने पापा अमरेश के मुंबई फोन कर हाल चाल लेहलस तब अमरेश गुस्सा गइलन और कहलन तू सब अपने मम्मी संगे पास के वरुणा नदी में डूबकर मर जा लेकिन आगे कबहु हमके फोन मत करे.. तू लोगन से हमार कोनों संबंध नहीं हो.. अब सोचिए जिस माता पिता ने उम्मीद के साथ अमरेश को जन्म देकर पाला पोसा वो अमरेश सब कुछ भूल गया.. जिस नंदनी ने उसे जीवन साथी बनाया उसी का दुश्मन बन गया.. अमरेश को जब इतना बेरहम होना था तो समझ से परे है उसने फ़ूल से मासूम बच्चों को किसके भरोसे जन्म दिया.. ईश्वर की कृपा देखिए चारों बच्चे नमक रोटी खा कर भी स्वस्थ हैं.. वैसे इस तरह के बच्चों पर ईश्वरीय कृपा भी होती है..
अमरेश की बेटी बच्चों में सबसे बड़ी और एक मेधावी छात्रा है.. वो खुद ही पढ़ती है और तीनों छोटे भाइयों को भी पढ़ाती है.. बच्चे लाख तक़लीफ़ सहकर भी उफ्फ तक नहीं करते.. जड़ावती ने बताया वो इसीलिए खुद दूसरे के घरों से खाने पीने का सामान मांगने जाती हैं ताकि बच्चों को शर्मिंदगी महसूस न हो.. जड़ावती ने आज के समाज पर तीखा हमला करते हुए कहा आजकल लोग मदद कम हालात का मज़ाक ज़्यादा उड़ाते हैं.. इसलिए भी बच्चे भूखे सोना पसंद करते हैं लेकिन कभी किसी से मुंह नहीं खोलते हैं.. जड़ावती के गांव भतसार की प्रधान रंजना सिंह नामक महिला हैं लेकिन अफ़सोस महिला होकर भी उन्होंने जड़ावती और उसकी बीमार बहू का दर्द नहीं समझा.. उसने जड़ावती के परिवार को कोई सरकारी मदद तक नहीं पहुंचाई.. न तो जड़ावती को वृद्धा पेंशन दिला सकी और न ही उनकी मानसिक तौर से कमज़ोर बहू को ही कोई मदद मिली.. यहां तक राशन कार्ड में परिवार के सदस्यों की संख्या का सही ज़िक्र क्यों नहीं प्रधान ने कराया ये भी जांच का विषय है.. पूछने पर पता चलता है कि महिला प्रधान तो केवल नाम की हैं असली काम तो उनके पति महोदय संभालते हैं.. समझ से परे है कि जब सारा काम प्रधान पति को ही देखना होता है तो महिलाओं को प्रधान बनाने के पीछे सरकार की मंशा क्या है..
जड़ावती को खाने पीने का सामान देकर मेरी पत्नी और उनके पड़ोसियों ने विदा किया.. एक बुज़ुर्ग महिला की दयनीय हालत देखकर मेरी पत्नी ने मुझसे उनके परिवार के मदद करने का आग्रह किया.. मैंने कहा उनकी अवश्य मदद की जाएगी बस थोड़ी पड़ताल ज़रुरी है.. जड़ावती की पारिवारिक हालात की तहकीकात करने कुछ लोग उनके घर भी पहुंचें तो हालात वाकई शर्मसार करने वाले दिखा..
जानकारी के लिए आप को बता दूं कि महाकवि सुदामा पांडेय “धूमिल” भी इसी खेवली गांव में पैदा हुए थे.. उनकी आरंभिक शिक्षा भी भतसार के उसी प्राथमिक विद्यालय में ही हुई थी जिसमें ये चारों बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं..धूमिल की वजह से ही गांव और प्राथमिक स्कूल विख्यात हैं.. धूमिल ने सामाजिक भ्रस्टाचार पर तब ही करारा हमला किया था जिसे एक बार आप भी आत्मसात कर लीजिए..
एक आदमी
रोटी बेलता है..
एक आदमी रोटी खाता है..
एक तीसरा आदमी भी है..
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है..
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है..
मैं पूछता हूं..
‘यह तीसरा आदमी कौन है ?’
मेरे देश की संसद मौन है।
धूमिल ने मज़बूरों की जो तकलीफ़ को कविता के ज़रिए व्यक्त किया है उससे उबरना किसी भी काल में आसान नहीं होगा..
हो सकता है जड़ावती के कोई पोता पोती भी एक दिन धूमिल सरीखा बन जाए या किसी अन्य विधा में नाम कमाएं लेकिन फ़िलहाल इन्हें मदद की बहुत आवश्यकता है..
मेरी इस पोस्ट के ज़रिए भतसार गांव की महिला ग्राम प्रधान रंजना सिंह, जिलाधिकारी वाराणसी कौशल राज शर्मा, वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से अपील है कि कृपया दयनीय जीवन जी रहे पांडेय परिवार की मदद करें.. आपमें से सक्षम लोग भी मदद के लिए आगे आ सकते हैं..