डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भारतीय सभ्यता, संस्कृति व धर्म विश्व में सर्वाधिक प्राचीन है। इसमें वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गई। सभी मत पंथ के सम्मान की शिक्षा दी गई। भारत विश्व गुरु था। लेकिन कभी भी तलवार के बल पर अपने मत का प्रचार नहीं किया गया। अन्य पंथ के धार्मिक स्थलों का सुनियोजित विध्वंश नहीं किया गया। छह दिसंबर उन्नीस सौ बानवे को भी वहां उपस्थित नेतृत्व इसी भाव विचार से प्रेरित थे। कारसेवकों में उत्साह का अतिरेक था। यह भी उल्लेखनीय है कि वह ढांचा चार शताब्दी से अधिक पुराना था। उसका विध्वंस सुनियोजित नहीं था। अयोध्या जन्मभूमि मसले का सद्भाव के साथ समाधान सराहनीय है। कुछ समय पहले न्यायिक निर्णय से जनभूमि स्थल का समाधान हुआ था। पूरे देश ने संयम व सद्भाव के साथ इसका स्वागत किया था। इसके बाद श्रीरामलला विराजमान मंदिर निर्माण हेतु भूमिपूजन सम्पन्न हुआ था। इसी प्रकार न्यायिक निर्णय से बाबरी विध्वंस मसले का भी समाधान हुआ। विद्वान न्यायधीश ने सभी तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए निर्णय सुनाया। यह माना गया कि ढांचा ढहाने की घटना अचानक हुई थी। आकस्मिक थी। विहिप नेताअशोक सिंघल तो ढांचा सुरक्षित रखना चाहते थे,क्योंकि वहां रामलला की मूर्तियां थीं।
कारसेवकों के दोनों हाथ व्यस्त रखने के लिए जल और फूल लाने को कहा गया था।
न्यायपालिका ने सभी बत्तीस आरोपियों को बड़ी कर दिया। इनमें लालकृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी,कल्याण सिंह, उमा भारती,विनय कटियार,साध्वी ऋतंभरा महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय,साक्षी महाराज शामिल है।लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती,शिवसेना के सतीस प्रधान,महंत नृत्य गोपाल दास, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कोर्टरूम से जुड़े थे। अन्य सभी छब्बीस आरोपी कोर्टरूम में मौजूद थे। न्यायमूर्ति एसके यादव के कार्यकाल का यह अंतिम फैसला इतिहास में दर्ज होगा। न्यायमूर्ति ने कहा कि इस घटना सुनियोजित गलत है। जो कुछ हुआ अचानक हुआ। घटना स्वतःस्फूर्त ढंग से हुई। कहा जाता है कि बाबर के सेनापति ने अयोध्या में मंदिर तोड़ कर उसके अवशेषों से ही बाबरी ढांचा तामीर कराया था। इसके बाद से ही यहां पुनः मंदिर निर्माण के आंदोलन किसी ना किसी रूप में चलते रहे है। अंतिम आंदोलन विश्व हिंदू परिषद के द्वारा प्रारंभ किया गया था। ऐसा नहीं है कि इस आंदोलन को ही ढांचा के विध्वंस का दोषी ठहरा दिया जाए। ऐसे भी अनेक लोग है जिन्होंने समय रहते अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया।
करीब पांच दशक पहले प्रो बीबी लाल की अगुवाई में अयोध्या में पुरातत्व टीम के द्वारा खुदाई की गई थी। इसमें के के मुहम्मद भी शामिल थे। उनका कहना था कि उस समय के उत्खनन में मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला था। लेकिन किसी ने इसे कभी पूरी तरह खोदकर देखने की जरूरत नहीं समझी। बाबरी ढांचे की दीवारों में मंदिर के खंभे दिखाई दे रहे थे। मंदिर के उन स्तंभों का निर्माण ब्लैक बसाल्ट पत्थरों से किया गया था। स्तंभ के नीचे भाग में ग्यारहनवी व बारहवीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश बनाए गए थे। इस तरह के चौदह स्तंभों को देखा गया था। वह कहते है कि यह समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि बाबर के सिपहसलार मीर बाकी ने कभी यहां रहे विशाल मंदिर को तुड़वाकर उसके टुकड़ों से ही बाबरी मस्जिद बनवाई रही होगी। जाहिर है कि जिन लोगों ने इस बात को दबाने का प्रयास किया व समस्या का स्थायी समाधान नहीं चाहते थे। उस समय जो पुरातात्विक प्रमाण मिल रहे थे,उनके आधार पर हिन्दू व मुसलमानों के बीच सौहार्द के साथ सहमति बनाने के प्रयास होने चाहिए थे। लेकिन उस समय सत्ता में बैठे लोगों ने ऐसा नहीं किया। बाद में भी जन्मभूमि आंदोलन के विरोध में समानान्तर राजनीति चलाई गई। ये सभी लोग समाधान नहीं बल्कि वोटबैंक राजनीति को तरजीह दे रहे थे। इस कारण भी कारसेवकों में उत्साह का अतिरेक था। लेकिन अब पुरानी बातों को छोड़ कर आगे बढ़ने का अवसर है। सद्भाव के साथ एक संवेदनशील समस्या का समाधान हो रहा है। यह स्वागत योग्य है।