मेजर आर एन पाण्डेय…

क्या तुमने सुनी है ?
गोलियों की तड़तड़ाहट,
तोप के गोलों का धमाका।
कान बहरे हो जाते हैं,
जीवन पर्यंत।
जरूरत पर छुट्टी नहीं मिलती,
जबतक न हो धमाकों का अन्त।
दस दिन पन्द्रह दिन तक,
नहाने को पानी नहीं मिलता।
कभी-कभी दो दिन तीन दिन खाना भी।
गोली लगे तो,
बाडी उठाने को तरसते हैं हम।
उठे भी तो गुम हो जाता है,
अपना ठिकाना भी।
क्या तुमने सुनी है गोलियों की तड़तड़ाहट ?
यदि सुनी होतीतो,
मुझे ट्रेन में बर्थ मिलती ।
बमुश्किल मिली छुट्टी,
टायलेट के गेट पर न कटती।
मेरे भी बच्चे कैम्ब्रिज में पढ़ते,
उनकी भी जिन्दगी संवरती खिलती।
सी एस डी के सामानों की, कटौती न होती,
घर वापसी पर सिस्टम से लड़ने की चुनौती न होती।
और बहुत कुछ है,
क्या-क्या लिखूं क्या फायदा ?
जब तुमने गोलियों की तड़तड़ाहट नहीं सुनी,
गोलों का धमाका नहीं सुना।
मेजर आर एन पाण्डेय

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