डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने शताब्दी समारोह को प्रेरणादायक उत्सव के रूप में प्रस्तुत किया। इसमें विद्यार्थी ही नहीं यहां पूर्व व वर्तमान में जुड़े लोगों में उत्साह दिखाई दिया। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग विश्वविद्यालय को देखने गए,यहां के कार्यक्रमों में सहभागिता की। यहां संस्कृत कवि सम्मेलन हुआ। एक अन्य कार्यक्रम में कुमार विश्वास सहित अनेक चर्चित कवियों का काव्यपाठ हुआ। आज एक कार्य कार्यक्रम में कुलपति प्रो अलोक कुमार राय भी अपने को रोक नहीं सके। उन्होंने खुद भी विद्यार्थियों के बीच अपनी काव्य रचना सुनाई। यह प्रसिद्ध हिंदी कवि श्री रामधारी सिंह “दिनकर” से प्रेरित थी। कुलपति इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों का उत्साह वर्धन करने आये थे। उन्होंने इस आयोजन में भाग लेने के लिए छात्रों और संकाय सदस्यों के प्रयासों की सराहना की। लखनऊ विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के अंतिम दिन,मालवीय सभागार में आयोजित लिटरेसी कार्यक्रम में, विश्वविद्यालय कैंपस के कवियों द्वारा काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस आयोजन में छात्रों के साथ साथ कुछ संकाय सदस्यों ने भी भाग लिया। यह कार्यक्रम छात्रों के प्रदर्शन के साथ शुरू किया गया,जिसमें शिवम ने अपनी कविता”वक्त कम है तो चलिए शुरुआत की जाए, के साथ अपनी प्रस्तुति शुरू की थी।

एक कविता हमें निरंतर चलना होगा” के साथ समाप्त हुई, जिसे उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को समर्पित किया। तत्पश्चात,ज्योत्सना सिंह ने “प्यासी ज़मी लहू सारा पिला दीया”और “जा रहा हूँ घर दूर दुनिया से बिछड़ कर” प्रस्तुत किया। उदय राज सिंह ने “क्या पाया हमने” गाया, जबकि हर्षित मिश्रा ने “मन में अपने भांग चढ़ाये फिरते है “, “बादल बरसो ऐसे गाँव में ” प्रस्तुत किया। इसके बाद मृदुल पांडे ने “है बदली दिशा हवाओं में” प्रस्तुत किया। इसके बाद आलोक रंजन ने ” कवियों की वाणी में सूर्य का साथ मिले ” और ” कायम इन अंधेरों का ” का प्रदर्शन किया। रिया कुमारी ने एक गीत “ऐ वतन भारत हमारा, तू हमारी जान है” गाया। शालीन सिंह ने अंग्रेजी में एक कविता प्रस्तुत की “विश्वविद्यालय 100 वर्ष पुराना है”। दिव्या तिवारी ने “यह कलमकार की दुनिया है” प्रस्तुत किया। तत्पश्चात, कला संकाय से जुड़े कई अन्य छात्रों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जिसके बाद प्रो राम सुमेर यादव,प्रो वाई पी। सिंह, डॉ कृष्ण जी श्रीवास्तव जैसे कुछ संकाय सदस्यों ने अपनी मौलिक रचनाएँ सुनाई। इसके बाद प्रोफेसर निशि पांडे द्वारा माननीय कुलपति को अंग-वस्त्र से सम्मानित किया गया। इसके बाद,डॉ अयाज़ अहमद इसलाही ने अपनी स्वयं की उर्दू रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जैसे “माँझी इस कश्ती के तलबगार हैं,”और डॉ विनीत कुमार वर्मा ने भी अपनी और की कुछ रचनाएँ प्रस्तुत कीं जिसमे “क्या रंग है, रूप है, हमाल है”,इसके अलावा अन्य संकाय से विद्ववत सदस्यों ने भी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। पूरे आयोजन का संचालन फिलॉसफी विभाग के डॉ प्रशांत कुमार शुक्ला ने किया। अध्यक्षता प्रो राकेश चंद्र और प्रो निशि पांडे ने की।

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