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अमरदीप सिंह, संवाददाता, गुजरात
गुजरात में कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में उपयोग होने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी जोरों पर है. आये दिन देश के कई हिस्सों में रेमडेसिविर की कालाबाज़ारी से लेकर नकली रेमडेसिविर बनाने वाले गिरोह पकडे जा रहे है ,पिछले हफ्ते ही अहमदाबाद से लेकर सूरत तक रेमडेसिविर की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वालो को पुलिस ने दबोचा है. लेकिन अब गुजरात टेक्निकल यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इसका हल निकाल लिया है जिसमे महज ५ मिनट में पता चल जाएगा की रेमडेसिविर असली है या नकली
ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें असली रेमडेसिविर के इंजेक्शन की जगह मिलती जुलती कोई और चीज बेची जा रही है. खरीदने वालों को पता नहीं चलता कि ये असली है कि नकली. इससे मरीज की जान को खतरा बना रहता है , लेकिन अब गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (GTU) ने ऐसा तरीका ईजाद किया है, जिससे असली-नकली का भेद खुल जाएगा. गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के मुताबिक, इस प्रकिया में केवल पांच ही मिनट लगेंगे.. जीटीयू के अंतर्गत आने वाली ग्रेजुएट स्कूल ऑफ फार्मेसी के असिस्टेंट प्रोफेसर कश्यप ठुम्मर के मार्गदर्शन में मास्टर्स ऑफ फार्मसी के छात्रों मलय पंड्या और निसर्ग पटेल ने रेमडेसिविर टेस्टिंग मेथड डेवलप किया है.
गौरतलब है की इंटरनेशनल काउंसिल फॉर हार्मोनाइजेशन (ICH) के दिशा निर्देशों के मुताबिक, पहली बार गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (GTU) ने हाई प्रेशर लिक्विड क्रोमोटोग्राफी (HPLC) मेथड विकसित किया है. GTU फार्मेसी स्कूल इस तकनीक से 5 मिनट में रेमडेसिविर की असलियत पहचान लेती है , डेवलप की गई मेथड पूरी तरह से अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक है और इसीलिए के इसके नतीजे सौ फीसदी विश्वसनीय है , इसके पहले जीटीयू ने सेनेटाइजर की भी परख में भी अपनी काबिलियत साबित की है