मजदूर अथवा श्रमिक का वास्तविक अर्थ……
डॉ. ध्रुव कुमार त्रिपाठी, एशोसिएट प्रोफेसर
समाजशास्त्रीय आलोक में श्रमिक, कामगार, श्रम, पूंजीपति जैसे शब्दों का प्रयोग प्रख्यात समाजशास्त्री कार्ल मार्क्स द्वारा किया गया है। आप सभी जानते हैं कि मार्क्स को श्रमिकों का नेता कहा गया हैं। श्रमिकों या मजदूरों की सटीक परिभाषा करना कठिन है, क्योंकि पश्चिमी समाज में मजदूर और मजदूरी का तरीका भारतीय समाज से बिल्कुल अलग है। ऐसा कहने का मुख्य कारण मार्क्स है, जिन्होंने मजदूरों को पहले ही सर्वहारा बना दिया था। आप जानते हैं भारत का एक भी मजदूर सर्वहारा नहीं है। यहां ये बाताना आवश्यक हैं कि भारत कि एक भी महिला बेरोजगार नही हैं। वह परिवार को चलाने एंव बच्चों के भरण पोषण जैसा विशेष कार्य करती है। इस लिहाज से अगर आप देखे तो कोई पुरूष बाहर जा कर कोई कार्य करता हैं और धन अर्जित करता हैं तो उसमें आधा हक महिलाओं का होता हैं, क्योंकि वो महिला उस पुरूष के माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री का भरण पोषण अपने श्रम से करती हैं। मनुष्य अपनी आश्वकताओं की पूर्ति के लिये ग्रामीण जीवन में दूसरे पर निर्भर नही रहता हैं। थोड़ा बहुत जो निर्भरता है, वो परिवर्तन के कारण हैं। मार्क्सवाद पर चर्चा से पहले आइये श्रमिक का अर्थ समझ लेते हैं।
श्रमिक:-
“स्वयं एवं परिवार के भरण पोषण के लिए काम करने वाले व्यक्ति को श्रमिक कहते हैं।”
कामगार:-
“किसी भी वस्तु के उत्पादन में संगठित रूप से लगे हुए व्यक्तियों समूह को हम कामगार की श्रेणी में रख सकते हैं।”
मजदूर:-
“जैसा कि नाम से स्पष्ट है विवशता एवं मजबूरी में किसी कार्य को करने वाला व्यक्ति मजदूर कहलाता है।”
भारतीय समाज में श्रमिकों के प्रकार:-
श्रमिकों के दो प्रकार मुख्य रूप से पाए जाते हैं। पहला संगठित क्षेत्र में कार्य करने वाला जनसमूह एवं दूसरा असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक। संगठित क्षेत्र में सभी ट्रेड यूनियन के सदस्य हैं। 14 जनवरी 2012 को जारी केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आयुक्त की रिपोर्ट के अनुसार सेंट्रल ट्रेड यूनियन की कुल संख्या 12 बताई गई है। जिनकी कुल सदस्य संख्या 2.4 करोड़ है। यह सभी ट्रेड यूनियन विशेष राजनीतिक दलों से संबंधित है। इन्हें भी जानना हमारे लिए जरूरी है। अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया से जुड़ी हुई है। इनके सदस्यों की संख्या 14.2 million हैं। दूसरा भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस आई एन पी यू सी जिस की सदस्य संख्या 33.3 million हैं। भारतीय मजदूर संघ से जुडी हुई भारतीय जनता पार्टी। इसकी सदस्य संख्या 17.1 मिलियन है। चौथा सेंटर ऑफ ट्रेड इंडियन ट्रेड यूनियन जो सीपीएम पार्टी से संबंधित है। इस की सदस्य संख्या 5.7 मिलियन है।
हिंदू मजदूर सभा जो समाजवादी से संबंधित है। इनकी सदस्य संख्या 9.1 मिलियन है। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन सेंटर इनकी सदस्य संख्या 4.7 मिलियन है और इन ए सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया साम्यवादी से जुड़े हुए हैं। सेल्फ एंप्लाइज आफ मेंस एसोसिएशन ऑफ इंडिया इनकी सदस्य संख्या 1.3 मिलियन है। ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेटर सेंटर इनकी सदस्य संख्या 6 मिलियन है और यह लोग ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़े हुए हैं। ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन जो सीपीआई से जुड़ी हुई है। इनकी सदस्य संख्या 2.5 मिलियन है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए श्रम संगठनों का प्रयोग करते आये हैं। प्राप्त साक्ष्य और आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि किसी राजनीतिक दल ने श्रमिकों के हित में ठोस कानून बनाने के लिये कोई ठोस प्रयास नही किया और श्रमिकों के हित में निर्णय नहीं लिया।