आज वक्त का निज़ाम कुछ इस कदर बदल चुका है कि हम झूठ की दुनिया में कमाल का सुकून पाने के आदी होते जा रहे हैं । इसी का फायदा हमारे कुछ फिल्मकारों ने बखूबी उठाना शुरु कर दिया है । अब वो काल्पनिक कथा हो तो सच झूठ का कोई मायने नही होता पर किसी की जीवनी पर फिल्म बनाने का दावा हो तो फिर झूठ और कपोल कल्पनायें गले नही उतरता ।
कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है नयी फिल्म “गुंजन सक्सेना” के साथ । जिसकी कहानी गुंजन सक्सेना की असली कहानी न होकर कथाकार के दिमाग में आते ख़् यालों का वो पुलिंदा है जिस पर हर समझदार दर्शक को सख़्त ऐतराज़ होगा । कहानी और पटकथा में सच्चाई को पीछे रखकर ख़्याली पुलाव पकाते हुए एक अच्छे विषय की फिल्म का सत्यानाश कर दिया ।
गुंजन सक्सेना एक आर्मी आफीसर की बेटी है । उसका भाई भी सेना में है । बचपन से ही उसकी इच्छा हवाई जहाज उड़ाने की थी । तमाम घटनाक्रमों के बाद आखिरकार उसे भारतीय वायुसेना की पायलट बनने का अवसर मिलता है । चयन के बाद जब उसे ट्रेनिंग के लिए उधमपुर एयरबेस में भेजा जाता है तो वहाँ उस पर महिला होने के नाते साथी पुरुषकर्मियो द्वारा भेदभाव किया जाता है और बड़ी मुश्किलात का सामना करते हुए वो किसी तरह ट्रेनिंग पूरी कर पाती है । उसके बाद जब कारगिल युद्ध होता है तब उसे हेलिकाॅप्टर की सार्टी करके घायल जवानों को लाने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है । वायुसेना के इतिहास में पहली बार महिला पायलट्स को युद्ध के इलाके से घायल जवानों को लाने के लिए भेजा जाता है क्या गुंजन इस आपरेशन को अंजाम दे सकी ? इसे जानने के लिए तो फिल्म देखिए ।
इस फिल्म का टेकअवे संदेश यह है कि वायुसेना आदि सैन्य विभागों में महिलाओं का आगे बढ़ना बेहद दुष्कर है क्यों कि पुरुषकर्मी उन्हे आगे बढ़ने नही देते । जब कि हमारे देश में आर्मी का कल्चर ऐसा है जहाँ महिलाओं को पूरा सम्मान दिया जाता है । वैसे भी आर्मी ” स्ट्रिक्ट डिसिप्लीन” पर चलती है । वहाँ हिन्दू-मुसलमान, सवर्ण-दलित, आदमी-औरत जैसा भेद सपने में भी नही हो सकता । बाद में असली गुंजन सक्सेना ने भी बताया कि उनके साथ कोई भेदभाव नही हुआ । गुंजन को हेलीकाॅप्टर की ट्रेनिंग न देने के लिए रोज रोज कोई न कोई बहाने बना दिये जाते थे जब कि सेना SOP और प्लाॅन्स पर ही काम करती है जिसमें कोई भी पूर्वनिर्धारित गतिविधि बिना स्पष्टीकरण के बार बार टल नही सकती ।
गुंजन को पहली महिला पायलट और अकेला सेलेक्ट होते बताया गया जबकि पहले बैच में कुल 25 महिला पायलट चुनी गयीं थी । गुंजन को कारगिल में जाने वाली पहली महिला पायलट दिखाया गया जबकि उसकी एक बैचमेट ने कारगिल की पहली सार्टी की थी । गुंजन 10वीं पास करके फिर 12वीं पास करके फिर स्नातक पास करके एक व्यक्ति के पास एयरफोर्स का फार्म भरने पहुँचती जो कि उसे बार बार अगली क्लास पास करके आने का कारण बताकर लौटा देता था । एक लेफ्टीनेंट कर्नल की बेटी को क्या यह नही पता होगा कि जो एयरफोर्स पायलट का इम्तिहान वो देने जा रही है उसमें भाग लेने की अर्हता 10वीं पास या 12वीं पास या ग्रेजुएशन है ? कमाल का बचकाना कांसेप्ट था । ऐसे कई बचकाने प्लाॅट डाले गये हैं । मसलन पुरुषकर्मियों से आहत होकर गुंजन अपना इस्तीफा देकर उधमपुर बेस से रातोरात निकल कर लखनऊ अपने घर आ जाती है । क्या आर्मी में यह संभव है कि कोई अधिकारी जब मन आये तो इस्तीफा देकर फ्रंट पोस्टिंग छोड़कर घर चला जाये और उसके बाद उसका सीनियर आफीसर उसे ससम्मान वापस बुला ले । ऐसे तमाम झूठों से सजी फिल्म है गुंजन सक्सेना ।
जहाँ तक एक्टिंग की बात है तो पंकज त्रिपाठी का अभिनय सबसे अच्छा रहा हैं गुंजन के पापा का किरदार बखूबी निभाया है पर पंकज के साथ एक समस्या है कि उसकी एक्टिंग लगातार टाइप्ड होती जा रही है । उसके एक्टिंग के कुछ शानदार नुस्खे हैं जो हर फिल्म में एक जैसे दिखते है । अब पंकज से कुछ वैरियेशन की उम्मीद है । गुंजन के किरदार में जान्हवी कपूर ठीक ठाक लगी हैं पर कई दृश्यों में वो अभिनय करने में लड़खड़ा भी गयीं । आर्मी आफीसर के रौब की कमी जगह जगह झलकती रही । बाकी कलाकार अपने रोल्स में ठीक रहे ।
संगीत बेहद कमजोर है । ऐसा संगीत न रखते तो बेहतर होता । एक भी गीत याद रखने लायक नही । फोटोग्राफी बेहतर है। कैमरामैन ने कई दृश्य बेहद खूबसूरती से पर्दे पर उतारे हैं । कारगिल सार्टी और लड़ाई के दृश्य रोमांचक हैं । प्रोडक्शन वैल्यू अच्छी है । कुल मिलाकर इस फिल्म को बेहतर न बनाने के लिए स्टोरी राईटर और डायरेक्टर जिम्मेदार है । डायरेक्टर शरन शर्मा की यह पहली फिल्म है और प्रोड्यूसर करन जौहर के साथ मिलकर भी वो कोई खास कमाल नही कर सका । बायोपिक होने के नाते फैक्चुअल काॅम्प्रोमाइज न के बराबर होना चाहिए । इस फिल्म को देखने के बाद देश की लड़कियों में आर्मी के प्रति डर और वितृष्णा बढ़ सकती है । दुनिया का हर देश अपनी सेना को फिल्मों में बढ़ा चढ़ाकर दिखाता है और हमारे करन जौहर ने जौहर दिखाते हुए सेना का रुतबा,मान सम्मान घटा दिया । खैर ….
मेरे हिसाब से इस फिल्म की रेटिंग 2.5 स्टार वो भी पंकज त्रिपाठी के अभिनय और और सेना से संबंधित कहानी होने के कारण