यदि आधुनिक भारत के डॉक्टर ज्योतिष का ज्ञान रखें, तो वे सरलता से निदान कर के, उचित इलाज करने में सक्षम होंगे। इसी प्रकार ज्योतिषीयों को भी मानव शरीर का ज्ञान होना आवश्यक है, जैसे जन्मपत्री में जो राशि, या ग्रह छठवें, आठवें, या बारहवें स्थान में पीड़ित हो, या इन स्थानों के स्वामी हो कर पीड़ित हो, तो उनसे संबंधित बीमारी की संभावना रहती है। इस संदर्भ में यहां, जन्मपत्री के अनुसार प्रत्येक स्थान और राशि से शरीर के कौन-कौन से अंग प्रभावित होते हैं, उनकी संक्षेप में सभी को जानकारी दी जा रही है।
- मेष राशि/लग्न : यह अग्नि तत्व राशि है। यह मस्तिष्क सिर, जीवन शक्ति और पित्त को प्रभावित करती है। इस लग्न वाला व्यक्ति श्रेष्ठ जीवन शक्ति वाला होता है। ऐसा व्यक्ति माणिक धारण करे, तो स्वास्थ्य उत्तम रहने की संभावना है। ज्योतिष शास्त्र के द्वारा बीमारियों का पूर्वानुमान लगाया जाता है। डॉक्टर, व्यक्ति के रोगी होने पर उसका इलाज करते हैं, परंतु ज्योतिष एक ऐसी विद्या है जिसके द्वारा बीमारियों का पूर्वानुमान लगा कर उनसे बचने के उपाय किये जाते हैं, बीमारी से बचा जा सकता है, या उसकी तीव्रता कम की जा सकती है।
- वृष राशि/लग्न : यह पृथ्वी तत्व राशि है। यह मुख, नेत्र, कंठ नली, आंत तथा वात को प्रभावित करती है। इस लग्न वाला सामान्यतः स्वस्थ रहता है। गले में संक्रमण की शिकायत इन व्यक्तियों को अधिक रहती है। इसके लिए सावधानी बरतें, तो उत्तम होगा।
- मिथुन राशि/ लग्नः यह वायु तत्व राशि है। यह कंठ, भुजा, श्वास नली, रक्त नली, श्वास क्रिया तथा कफ को प्रभावित करती है। इस लग्न वाले की जीवन शक्ति सामान्य रहती है।
- कर्क राशि/ लग्नः यह जल तत्व राशि है। यह वक्ष स्थल, रक्त संचार और पित्त को प्रभावित करती है। इस राशि-लग्न वालों को मूंगा लाभकारी है जो जीवनदायिनी औषधि का काम करता है।
- सिंह राशि/लग्न : यह अग्नि तत्व राशि है। यह जीवन शक्ति, हृदय, पीठ, मेरुदंड, आमाशय, आंत और वात को प्रभावित करती है। इस लग्न, राशि वाले में जीवन शक्ति अधिक रहती है। इनके लिए मूंगा जीवन शक्तिदायक और लाभदायक है।
- कन्या राशि/लग्न : जन्मपत्रिका में छठा स्थान बीमारी का स्थान माना जाता है। इस कारण जन्मपत्री का परीक्षण करते समय छठवें स्थान, या कन्या राशि का सूक्ष्म और सावधानी से परीक्षण करना चाहिए। यह पृथ्वी तत्व राशि है। यह उदर के बाहरी भाग, हड्डी, आंतें, मांस और कफ को प्रभावित करती है।
- राशि तुला/ लग्न : यह वायु तत्व राशि है। यह कम, श्वास क्रिया तथा पित्त को प्रभावित करती है। इस लग्न वालों के स्वास्थ्य के लिए नीलम लाभकारी है।
- वृश्चिक राशि/ लग्न : या यह जल तत्व राशि है। यह जननेंद्रिय, गुदा, गुप्तांग, रक्त संचार और वात को प्रभावित करती है।
- धनु राशि/लग्न : यह अग्नि तत्व राशि है। यह जांघ, नितंब तथा कफ और पाचन क्रिया को प्रभावित करती है। इसके लिए पीला पुखराज लाभकारी है।
- मकर राशि/लग्न : यह पृथ्वी तत्त्व राशि है। यह जांघ, घुटनों के जोड़, हड्डी, मांस तथा पित्त को प्रभावित करती है। इनके लिए नीलम और हीरा लाभकारी हैं।
- कुंभ राशि/लग्न : यह वायु तत्त्व राशि है। यह घुटने, जांघ के जोड़, हड्डियों-नसों, श्वास क्रिया तथा वात को प्रभावित करती है।
- मीन राशि/लग्नः यह जल तत्त्व राशि है। यह पांव, पांव की उंगलियों, नसों, जोड़ों, रक्त संचार तथा कफ को प्रभावित करती है। इनके स्वास्थ्य के लिए मोती लाभकारी है।
ज्योतिष द्वारा रोगों की पहचान व चिकित्सा ज्योतिषशास्त्र में जन्म कुंडली, वर्ष कुंडली, प्रश्न कुंडली, गोचर तथा सामूहिक शास्त्र की विधाएँ व्यक्ति के प्रारब्ध का विचार करती हैं, उसके आधार पर उसके भविष्य के सुख-दु:ख का आंकलन किया जा सकता है। चिकित्सा ज्योतिष में
इन्हीं विधाओं के सहारे रोग निर्णय करते हैं तथा उसके आधार पर उसके ज्योतिषीय कारण को दूर करने के उपाय भी किये जाते हैं। इसलिए चिकित्सा ज्योतिष को ज्योतिष द्वारा रोग निदान की विद्या भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे मेडिकल ऐस्ट्रॉलॉजी कहते हैं।
मन और शरीर के मध्य तारतम्य स्वास्थ्य है तथा इस तारतम्य का टूटना ही रोग है। जन्मपत्रिका में सूर्यए चन्द्रमा, लग्न की स्थिति एवं कुछ अन्य योग यह तय करते है कि हमारी जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसी होगी। बृहत पाराशर होरा शास्त्र में कुछ विशेष परिस्थितियों में हुए जन्म को अशुभ जन्म माना गया है। यदि इन विशेष स्थितियों में जन्म हो तो ये जन्म पत्रिका के अन्य शुभ योगों को नष्ट कर देते हैं। अशुभ जन्म में निम्न स्थितियों का वर्णन किया गया है।
1. अमावस्या
2. कृष्ण चतुर्दशी
3. भद्रा करण
4. भाई या पिता का एक नक्षत्र
5. संक्रान्ति
6. क्रान्तिसाम्य-सूर्य और चन्द्रमा की क्रांति समान हो
7. सूर्य ग्रहण
8. चन्द्र ग्रहण
9. व्यतिपातादि दुर्योग
10. त्रिविद्य गण्डान्त
11. यमघण्ट योग
12. तिथि क्षय
13. ग्धादि योग
14. त्रिखल जन्म
15. विकृत प्रसव
16. तुला मास
17. सार्प शीर्ष-वृश्चिक संक्रांति मास में अमावस्या का जन्म हो और सूर्य-चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र के तीसरे या चौथे चरण में हो तो सार्प शीर्ष दोष होता है। जीवन भय, घातक रोग, धन आदि का क्षय। जब तक शांति न हो शिवालय में घी का दीपक जलाएं।