डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भरत जी ने चित्रकूट में प्रभुराम से कहा था कि यदि वनवास के बाद निर्धारित अवधि तक आप वापस अयोध्या नहीं आये तो वह अपना जीवन ही समाप्त कर लेंगे। यही कारण था कि प्रभु राम ने रावण वध के बाद हनुमान जी को पहले ही अयोध्या भेजा था, जिससे वह भरत जी को स्थिति की जानकारी दे सकें। केवल भरत जी की नहीं अयोध्या के सभी लोगों की यही मनोदशा थी। हनुमान जी के सन्देश से सभी को राहत मिली,और वह लोग प्रभु राम सीता जी के स्वागत की तैयारी करने में जुट गए थे।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामायण के इसी प्रसंग की प्रेरणा से अयोध्या में भव्य दिव्य दीपोत्सव के आयोजन का निर्णय लिया था। इसकी शुरुआत उन्होंने पदभार ग्रहण करने के बाद पहली दीपावली को ही कर दी थी। प्रभु राम, सीता जी,लक्ष्मण पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे थे। प्रयास किया गया कि अयोध्या में प्रतीकात्मक रूप में त्रेता युग का प्रसंग जीवंत हो।
रामचरित मानस में गोस्वामी जी लिखते है-
आवत देखि लोग सब । कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ। उतरेउ भूमि बिमान॥
इस दृश्य की कल्पना करना ही अपने आप में सुखद लगता है। अयोध्या में ऐसा ही दृश्य प्रतीकात्मक रूप में दर्शनीय है।प्रभु राम के वियोग में अयोध्या के लोग व्याकुल थे। अंततः वह घड़ी आ ही गई जब प्रभु राम अयोध्या पधारे। उनके वियोग में लोग कमजोर हो गए थे। उनको सामने देखा तो प्रफुल्लित हुए –
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा॥
बामदेव बसिष्ट मुनिनायक।।देखे प्रभु महि धरि धनु सायक।
चौदह वर्षों बाद प्रभु को सामने देखा तो लोग हर्षित हुए-
प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी।।
इस मनोहारी दृश्य को भी अयोध्या में जीवंत किया गया।
अयोध्या में दीपोत्सव जैसा दृश्य था। प्रभु राम सीता की आरती के लिए जो दीप प्रज्वलित किये गए थे, उनसे अयोध्या जगमगा उठी थी। उनके स्वागत में प्रत्येक द्वार पर मंगल रंगोली बनाई गई थी। सर्वत्र मंगल गान हो रहे थे-
करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें॥
पुर सोभा संपति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना
बीथीं सकल सुगंध सिंचाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।
नाना भाँति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे॥
प्रभु राम अंतर्यामी है, सब जानते है। वह लीला कर रहे थे। वह तो अवतार थे। इस रूप में वह जनसामान्य हर्ष में सम्मिलित थे-
जीव लोचन स्रवत जल। तन ललित पुलकावलि बनी।
अति प्रेम हृदयँ लगाइ। अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी॥
प्रभु मिलत अनुजहि सोह। मो पहिं जाति नहिं उपमा कही।
जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरि। मिले बर सुषमा लही।।