अश्विनी शर्मी, वरिष्ठ पत्रकार.
बिहार का मिथिलांचल इलाका सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से बहुत ही समृद्धशाली है। मेरा सौभाग्य है कि इन दिनों इस विरासत का साक्षी बनने का अवसर प्राप्त हो रहा है। मुझे मिथिलांचल के इन गौरवशाली स्थलों का भ्रमण करने के साथ उस बनगांव भी जाने का मौका मिला, जिसे बिहार का सबसे बड़ा गांव बताया जाता है। इसी से लगा चैनपुर गांव भी है। इन दोनों ही गांवों को आईएएस, आईपीएस का गांव भी कहा जाता है।
आइए सबसे पहले मंडन मिश्र जी की बात हम करते हैं। मंडन जी का नाम तो आपने सुना ही होगा। वही मंडन मिश्र जिनका तोता तक संस्कृत में बात करता था। मंडन मिश्र को मिथिलाचंल ही नहीं देश का प्रकांड मीमांसा विद्वान माना जाता है। उनकी तपोभूमि सहरसा के महिषि गांव में है। मंडन जी की विद्वता से प्रभावित होकर खुद शंकराचार्य शास्त्रार्थ करने उनकी तपोस्थली पहुंच थे। शास्त्रार्थ का पहला भाग तो मंडन मिश्र हार गए लेकिन उनकी हार का बदला लेने के लिए पत्नी विदुषि ने जब शंकराचार्य को शास्त्रार्थ की चुन्नौती दी तो वो भी सोच में पड़ गए। अंतत: शंकराचार्य ने नारी का सम्मान करते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली। मंडन मिश्र के धाम में आज भी वेद की शिक्षा लेने के लिए लोग दूर दूर से पहुंचते हैं।
मंडन मिश्र के धाम महिषी में ही भगवती सती का उग्रतारा मंदिर तंत्र साधना के लिए विख्यात है। शक्ति पुराण के अनुसार महामाया सती के मृत शरीर को लेकर शिव पागलों की तरह ब्रहमांड में घूम रहे थे। इससे होने वाले प्रलय की आशंका से ही भगवान विष्णु ने सती के शरीर को सुदर्शन से 52 हिस्सों में बांट दिया था। सती के शरीर का हिस्सा जहां जहां गिरा उसे सिद्ध पीठ के रुप में मान्यता मिली। ऐसा कहा जाता है कि सती का बायां नेत्र इस जगह पर गिरने से इसे शक्ति पीठ माना जाता है। उग्र से उग्र व्याधियों का नाश करने की वजह से ही इस मंदिर का नाम उग्र तारा मंदिर पड़ा है।
सती के उग्रतारा मंदिर में दर्शन के बाद सहरसा के महिषी प्रखंड के कंदाहा में मौजूद सूर्य मंदिर का दर्शन हमने किया। इस मंदिर का निर्माण मिथिला के ओनिहरा वंश के राजा हरिसिंह देव द्वारा चौदवहीं शताब्दी में किया गया है। ओलौकिक महत्व वाले इस मंदिर को दुनिया के सबसे प्रचानी सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। भगवान सूर्य की दुर्लभ और बेशकीमती मूर्ति में मेष राशि का चित्रण इसे विशेष बनाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्भ ने त्वचा रोग से मुक्ति पाने के लिए सूर्य की इस मूर्ति की स्थापना कर अराधना शुरू की थी। इस मंदिर के परिसर में एक कुआं भी है जिसके पानी के बारे में कहा जाता है कि यदि इस पानी से कोई नहा ले तो उसकी त्वचा रोग ठीक हो जाती है।
अब आप को बिहार के सबसे बड़े गांव बनगांव ले चलते हैं। सहरसा का ये गांव तकरीबन एक लाख की आबादी वाला है। इसे गांव की विशालता की वजह से इसे तीन पंचायत में बांटा गया है। इसके पास ही चैनपुर गांव भी है। चैनपुर में ही मेरे प्रिय Avijeet Kumar Jha की ससुराल भी है। बनगांव हो या चैनपुर इन गांवों को आईएएस, आईपीएस और सेना के जवानों का गांव कहें तो ग़लत नहीं होगा। यहां पहुंचकर ऐसा लगता है कि जैसे दिल्ली के किसी पुराने इलाके में पहुंच गए हैं। दोनों ही गांव के लोग बेहद पढ़ा लिखे तो है हीं यहां मंदिर भी एक से बढ़कर एक नक्काशी वाले हैं। चैनपुर को तो छोटी काशी भी कहते हैं। गांव में सुबह सवेरे सैकड़ों नौजवान सेना में भर्ती होने के लिए दौड़ते हुए आपको मिल जाएंगे।
कोई इलाका क्यों तरक्की करता है इसके मूल में जाने पर सच का पता चलता है। बनगांव के लक्ष्मीनाथ गोसाई बेहद सिद्ध पुरूष माने जाते थे। वर्तमान में बनगांव में उनके नाम से कई एकड़ जमीन पर स्कूल, कॉलेज एंव मंदिर का निर्माण हुआ। बनगांव के निवासी उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं यही वजह है कि हम उनके परिसर में मौजूद सैकड़ों साल पुराने पीपल के पेड़ को देखने के लिए भी गए। लक्ष्मी नाथ गोसाई के मंदिर के पुजारी ने बताया कि उनके कमरे में रात में उनके विश्राम के लिए जो बिस्तर बिछा रहता है उसकी चादर में सुबह सिलवटें पड़ी मिलती हैं।
सहरसा में एक से बढ़कर एक तीर्थ स्थान हैं लेकिन सबसे बड़ी मुसीबत का भी वर्णन करना आवश्यक है। वो मुसीबत नेपाल से कोसी नदी के रूप में चल कर आती है। कोसी नदी जिसे बिहार का शोक भी कहते हैं बहुत ही बेतरतीब तरीके से चौड़ाई में फैलते हुए खेती की ज़मीन को अपनी आगोश में लेती जाती है।सो हम उस कोसी नदी के पुल पर भी पहुंच गए। कोसी नदी पर बना ये पुल सहरसा और दरभंगा की दूरी को कम करता है। हमने इस पुल से कोसी नदी का दर्शन किया और प्रार्थना की किसानों को राहत मिले।