इन गन्दी राजनीति वाले राजनेताओं से बचाओं रे बाबा…..
सत्यम ठाकुर, ब्यूरो चीफ, गुजरात
कोरोना काल में हर तरफ लोग परेशान हैं देश की अर्थव्यवस्था एक दम चौपट हो गई हैं, हर ओर सन्नाटा फैला हैं चारो तरफ अन्धेरा नजर आ रहा हैं, लोग भूखे प्यासे रोड़ पर अपने वतन की ओर पैदल ही चल पड़े हैं, न जाने कितने गरिब ऐसे हैं जो की रोजाना सड़को पर अपना दम तोड़ रहे हैं इन जैसे तमाम मुद्दें हैं जिस पर सभी राजनैतिक पार्टीयों को एक साथ मिलकर विचार करना चाहिये। लेकिन नही ऐसा भला कैसे हो सकता हैं। इन सब के बीच आड़े जो आ जाता हैं कि उनकी गन्दी ओछी राजनिती……
सभी राजनैतिक पार्टीयों को इन सब से कोई मतलब नही हैं उनको तो मतलब हैं केवल और केवल अपने राजनितीक रोटीयां सेकना का। इस कोरोना काल में सभी राजनैतिक पार्टीयां केवल और केवल एक दूसरे पर लांछन लगा रही हैं। कोई भी राजनेता इस पर कभी भी मुखर नही होता कि वो इस संकट के घड़ी में अपनी राजनिती को छोड़कर समस्याओं की ओर ध्यान दे।
इस कोरोना काल में गुजरात में लोग मर रहे हैं गरीब मजदूर पलायन कर रहे हैं पूरा गुजरात इस समय संकट में हैं। लेकिन इन सब बातों का वहां के राजनेताओं पर कोई असर नही हैं। उनको तो इस मलाईदार समय का फायदा जो उठाना हैं। अब गुजरात में नया मुद्दा उठ गया हैं शराब बंदी का। आईये हम आप को बताते हैं किस तरह से ये मु्द्दा गुजरात में गरमाया जा रहा है और कौन गरमा रहा हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने शराब बंदी का मद्दा गरमाया
आइये हम आपको सीलसीले वार तरीके से बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला क्रमश: क्या क्या आरोप हैं लगाकर गुजरात की राजनिती में शराब बन्दी के मुद्दे को गरमाया हैं और वो भी तब जब गुजरात संकट में है।
- अब तक गुजरात में गांधी जी और सरदार साहेब के नाम से चल रही शराब बंदी की नीति का मै समर्थक रहा हु, लेकिन लाकडाउन के बीच केंद्र सरकार ने जब दारु के ठेको को पुरे देश में जब खोल दिया है तब हमें लगा अगर सरकार का मानना है की दारू से कोरोना का भय दुर होता है और सरकार की इनकम बढती है तो Why not in gujrat?
- गुजरात में किसको क्या खाना, क्या पीना उसमे सरकार को इंटरफेरॉन्स नहीं करना चाहिए। अगर शराब गांधीजी के कारण गुजरात में बंध है तो वह ऑन पेपर है, ढोंग है, छलावा है!
- गुजरात मे एक किलोमीटर का एरीया ऐसा नहीं होगा जहा शराब ना मिलती हो! वे भी असल ब्रांडेड मिलती हो तो ठीक मगर यहा तो ठर्रा मिलता है, जीसे हम लट्ठा कहते है ! लट्ठा पीके हजारो लोग मर गए गुजरात में और इससे यह साबित हो चूका है की गुजरात में दारुबंदी की नीति फेलियर है ! इसको री-ओपन करना चाहिए, रीकन्सीडर करना चाहिए! एक साइंटिफिक एप्रोच के साथ, एक कमिटी बनाके सोचना चाहिए की इसको रखने का क्या फ़ायदा है और कीसे है ?
- गुजरात में शराब बंदी एक ढोंगी नीति है! यह गलत बात है की शराब पिके लोग रास्ते पर आ जायेंगे, धमाल मच जायेगी, हमारी बहनों की सलामती जोखीम मे आ जायेगी । गोवा, मुंबई जैसे शहर और राज्य है, जहा पे शराबबंधी ना होते हुए भी महीलाए सुरक्षित रोड पर घूमती है रात में 12 बजे, कोई दिक्कत नहीं होती। क्राइम में गुजरात 17th नंबर पे है, जबकि गोवा में गुजरात के मुकाबले कम क्राइम है।
- यहाँ बंदी है इसीलिए लोग डुप्लीकेट शराब पीके पागल होजाते है। बंदी है इस लिए ज्यादा पैसे देते है गलत शराब पीते है, बंदी है इसीलिए शराब पीने के लिए आबू, गोवा और दीव दमन जाते है। हर रोज गुजरात मे इतना शराब आता है। राजस्थान से, महाराष्ट्र से, मध्यप्रदेश से इतना शराब यहाँ भी बनता है वो भी थर्डक्लास क़्वालिटी का। गवर्नमेंट की खुद की मेहेरबानी से मिलता है, तो यह मेहरबानी वाली पॉलिसी गलत है, इसलिये तोड़ दो इस ढोंगी नीति को।
- गांधीजी की नीति सत्य की थी, और यह शराब बंदी जो फिलहाल गुजरात में चल रही है वह असत्य की नीति है। इस ढोंगी दारु बंदी की नीति को गांधी जी के नाम से बंध करनी चाहिए। पीते है लोग तो उनको खुल के पीने दो।
- जब में एक समय गुजरात का मुख्यमंत्री रहा था उस समय मैंने होम के डिपार्टमेंट से निकालकर अलग से नशाबंदी डिपार्टमेंट बनाया था। आज नशाबंदी डिपार्टमेंट है पर सरकार उसका उपयोग नहीं करती। हमने 120 नये पुलिस स्टेशन बनवाये थे शराबबंदीधी के चुस्त पालन के लिए और उस समय इस पॉलिसी को लिबरल भी बनाया था, जिससे शराब पीनी है उससे लाइसेंस लेने के बाद मिल सकती है! उस समय हमारी गठबंधन की सरकार थी इस लिए थोड़ी लिमिटेशन थी फिर भी उस समय पॉलिसी को लिबरल भी बनाया था ! उस समय अगर कोई महिला पुलिस स्टेशन जाकर पुलिस को कम्प्लेन करती है की उसका पति शराब पीकर उसपे अत्याचार कर रहा है तो पुलिस उसपे कड़क एक्शन लेती थी!
- में पंचमहल के ट्राइबल इलाके में गया हु, वहा महुड़े के बोहोत सारे औय अच्छे पेड़ है जिससे वहा के ट्राइबल लोग महुड़े की शराब बनाते है! जो हेल्थ के लिए बोहोत अच्छी मानी जाती है.! तो क्यों ना ट्राइबल कम्युनिटी के हमारे युवाओं को गवर्नमेंट के द्वारा परमिशन मिल जाए जिससे उनको रोजगार प्राप्त हो और राज्य के लोगो को जो शराब पीना चाहते है उन्हे अच्छी और शुध्ध क्वालिटी की शराब मिले ! साथ में गवर्नमेंट को भी इनकम मिले !
- जब भी गुजरात में हमारी सरकार बनेगी तो हम सबसे पहला काम यह ढोंगी शराब बंदी की नीति को हटाने का करेंगी! जनता अपनी मरजी से अपने घरमे जो खाना पीना चाहती हो वह कानुन के दायरे मे खुल के एन्जॉय कर सकेंगे। जनता को लगना चाहिए की, “स्वतंत्र देश में क्या खाना है, क्या पीना है वह उनकी मर्ज़ी होंगी, लेट देम एन्जॉय अकॉर्डिंगली .”!
- शराब बंदी गैरकानुनी पैसे की हेराफेरी का जरीया है। जो पैसा बुटलेगर, प्रशाशन और मंत्रीओ के बीच गलत तरीके से घुमता है वो सीधा सरकार के खजाने में आयेगा ! जिसका फ़ायदा आम जनता को फ्री पढ़ाई और फ्री मेडिकल के लिए मिल सकता है।
- जैसे तम्बाकू के पैकेट पे लिखा होता है की तमाकू खाना सेहत के लिए हानिकारक है, वैसे आप चाहे तो शराब पे भी लिखवा दीजिये, लेकिन पब्लिक को गलत नीति से ठगना गवर्नमेंट की दोगली नीति है जिसका अब अंत होना चाहिये. दारुबंदी की ढोंगी नीति से गुजरात की जनता को मुक्त करना चाहिए!
- गुजरात में शराब बंदी को मुक्त करना और कानुन को सख्त करना हमे आता है । यदी हम सत्ता मे वापीस आये तो पहला काम ईस ढ़ोंगी और धकौसली शराब बंदी पर पुन विचार करेगे यह तय है।
-शंकर सिंह वाघेला
अब आप ने सभी आरोपों के साथ साथ शंकर सिंह वाघेला का अगले चुनाव के लिये गुजराती के सभी शराबीयों भाईयों को खुला निमंत्रण देते तो देख ही लिया। आप आप ही तय करें कि क्या इस संकट के घड़ी में इस तरह की राजनिती सही हैं। रही बात मेरी तो मुझे नही लगता हैं कि इस तरह की गन्दी औऱ ओछ राजनिती का ये सही समय नही है। ये समय हैं सबको एक साथ मिलकर एक दूसरे के साथ कन्धे से कन्धे मिलाकर जरूरतमंदों की मदद करनी की….
लास्ट में यही कहूगां कि
इन गन्दी राजनिती वाले राजनेताओ से बचाओं रे बाबा……..